!!ॐ नमो भगवते!!
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घृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समावेता युयुत्सवः!
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय!!१!!
घृतराष्ट्र बोले, हे सञ्जय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए युद्ध
की इच्छा रखने वाले मेरे और पांडुके पुत्रों ने क्या किया?!!१!!
उपरोक्त श्लोक 'अर्जुन विषद योग' (प्रथम अध्याय: श्रीमभ्दगवग्दीता) का है.
" श्रीमभ्दगवग्दीता: मेरीसमझ में " नामक लिखी जाने वाली इस कृति के कर्ता
स्वमं भगवान शीकृष्ण हैं.
मुझ विमूढ़ में ऐसी कोई प्रज्ञा या सामर्थ्य नहींकी 'श्रीमभ्दगवग्दीता' के
एक श्लोक को भी समझ सकूँ.
परमपुरुष, परमात्मा भगवन श्रीकृष्ण ही अनुप्रेरित करते है, सब कुछ अनुकूल बनाते है,
और व्यक्त होने की कृपा करते है मुझ तुच्छ की लेखनी के माध्यम से.
इस कृति में मैं 'श्रीगीता' के मूल श्लोकोंएवं टीकाओं को
गीताप्रेस, गोरखपुर के द्वारा प्रकाशित " पद्मपुराणान्तर्गत प्रत्येक
अध्याय के महामत्य्मसहितः श्रीमभ्दगवग्दीताः १६ " से ले-लेकर आपकी सेवा
में प्रस्तुत कर रहा हूँ.
मैं गीताप्रेस, गोरखपुर(प्रकाशक एवं मुद्रक) का आभारी हूँ.
उनका वेबसाइट है www.gitapress.org
विषाद मानवता है, विषादमुक्त देवता है, विषादहीन पशुता है.
अर्जुन विषादयुक्त हो जाते हैं, श्रीकृष्ण सर्वथा विषादमुक्त हैं,
और युद्धक्षॅत्र में आयेशेष सारे कौरवों, पांडवोंतथा उनकी सेनाओ के मनों
में कोई विषाद नहीं!
यह एक स्पस्ट स्थिति है, मानसिक अवस्था है- इस वक्त युद्धभूमि में
उपस्थित सभी मनुष्यों की. आगे पढ़ें http://sribhagwatgeeta.blogspot.com
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*रश्मिप्रीत* http://sribhagwatgeeta.blogspot.com
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