Monday, February 6, 2012

Digest for maanavta

---------- Forwarded message ----------
From: maanavta@googlegroups.com
Date: Mon, 06 Feb 2012 00:56:05 +0000
Subject: www.maanavta.com Digest for maanavta@googlegroups.com - 1
Message in 1 Topic
To: Digest Recipients <maanavta@googlegroups.com>

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Today's Topic Summary
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Group: maanavta@googlegroups.com
URL: http://groups.google.com/group/maanavta/topics

- सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के अनुसार निष्काम सेवा की
definition [1 Update]
http://groups.google.com/group/maanavta/t/24c44ebf1734784b


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Topic: सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के अनुसार निष्काम सेवा की definition
URL: http://groups.google.com/group/maanavta/t/24c44ebf1734784b
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---------- 1 of 1 ----------
From: "Gurdeep Singh : Admin : www.maanavta.com" <gurdeepsingh@maanavta.com>
Date: Feb 05 09:06PM +0530
URL: http://groups.google.com/group/maanavta/msg/3058d1d5883c686b

*सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज के अनुसार निष्काम सेवा की definition :*

पूज्य माता सविन्दर जी ने गुरुदेव से पूछा, "आज आपने सेवा के विषय में बहुत
कुछ कहा, लेकिन आपने यह नहीं बताया की तन-मन-धन में से कौन से सेवा सबसे महान
है?"

गुरुदेव ने सरल भाव से कहा, "सेवा बड़ी-छोटी नहीं होती. बस सेवा ही होती है. हर
प्रकार की सेवा महान है, शर्त बस यह है की वह समयानुकूल हो, करता भाव से रहित
हो, निष्काम हो."

गुरुदेव का उत्तर सुनकर पूज्य माता सविन्दर जी ने पुन: पूछा, "इन्सान जो भी
कर्म करता है, उसके साथ कोई न कोई कामना जुडी होती है, फिर कोई सेवा निष्काम
कैसे होगी?"

"सेवा निष्काम हो सकती है, यदि वह मालिक के हुक्म के अनुसार हो," गुरुदेव ने
सहज भाव में कहा. "बल्कि यह कहना चाहिए की निष्काम सेवा होती ही वह है जो
मालिक के हुक्म में हो, क्योंकि उसमें सेवक की अपनी कोई कामना, कोई इच्छा होती
ही नहीं. इसके उल्ट जो काम अपनी मर्ज़ी से किए जाते हैं, चाहे वे दूसरों की
भलाई के लिए हों, उनमें direct (परोक्ष) या indirect (अपरोक्ष) तौर पर कोई न
कोई कामना अवश्य जुडी होती है. अपनी मर्ज़ी से की हुई सेवा निष्काम हो ही नहीं
सकती."

कुछ देर चुप रहने के बाद गुरुदेव ने आगे फरमाया, "वैसे भी जिसे हम अपनी मर्ज़ी
से करते हैं, वह सेवा नहीं होती, क्योंकि सेवा में तो एक सेवक होता है, एक
मालिक होता है, लेकिन जो काम मनमर्जी से किया जाता है उसमें सेवक और मालिक वह
खुद ही होता है. इसे महान सेवा नहीं माना जा सकता, अच्छा कर्म तो कहा जा सकता
है. महान सेवा वही है जो मालिक के हुक्म में की जाए, चाहे वह तन की हो, मन की
हो या धन की हो."

*बुक : गुरुदेव हरदेव, भाग 1 , पेज 82 -83 *
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