Monday, August 29, 2011

Fwd: Digest for prakriti-a-call-to-return-to-the-nature@googlegroups.com - 2 Messages in 2 Topics

---------- Forwarded message ----------
From: prakriti-a-call-to-return-to-the-nature+noreply@googlegroups.com
Date: Sun, 28 Aug 2011 15:14:15 +0000
Subject: Digest for
prakriti-a-call-to-return-to-the-nature@googlegroups.com - 2 Messages
in 2 Topics
To: Digest Recipients
<prakriti-a-call-to-return-to-the-nature+digest@googlegroups.com>

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Today's Topic Summary
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Group: prakriti-a-call-to-return-to-the-nature@googlegroups.com
Url: http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/topics

- UID Card - आधार कार्डः अमरीका कंपनियों के हवाले भारतीयों की गुप्त
जानकारियाँ [1 Update]
http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/t/6252180c09f15c1b
- How Many Indian Doctors Loot Patients through their fixed
percentage [1 Update]
http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/t/b8930a324a37892f


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Topic: UID Card - आधार कार्डः अमरीका कंपनियों के हवाले भारतीयों की
गुप्त जानकारियाँ
Url: http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/t/6252180c09f15c1b
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---------- 1 of 1 ----------
From: Prakriti Aarogya Kendra <prakriti.pune@gmail.com>
Date: Aug 27 02:02PM +0530
Url: http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/msg/adda1488b5cac90e

* आधार कार्डः अमरीका कंपनियों के हवाले भारतीयों की गुप्त जानकारियाँ


http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=16157&Itemid=43&utm_source=twitterfeed&utm_medium=twitter&utm_campaign=Feed%3A+hindimedia%2FHpAB+%28Hindimedia%29
आपकी
बात<http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=category&sectionid=7&id=35>
|
डॉ. मनीष कुमार | शुक्रवार , 05 अगस्त 2011

वर्ष 1991 में भारत सरकार के वित्त मंत्री ने ऐसा ही कुछ भ्रम फैलाया था कि
निजीकरण और उदारीकरण से 2010 तक देश की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, बेरोज़गारी
खत्म हो जाएगी, मूलभूत सुविधा संबंधी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी और देश
विकसित हो जाएगा। वित्त मंत्री साहब अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं। 20 साल बाद
सरकार की तरफ से भ्रम फैलाया जा रहा है, रिपोट्‌र्स लिखवाई जा रही हैं, जनता को
यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि आधार कार्ड बनते ही देश में सरकारी काम
आसान हो जाएगा, सारी योजनाएं सफल होने लगेंगी, जो योजना ग़रीबों तक नहीं पहुँच
पाती वह पहुँचने लगेगी और सही लोगों को बीज एवं खाद की सब्सिडी मिलने लगेगी।
लेकिन अगर यह सब नहीं हुआ तो इसके लिए किसे ज़िम्मेदार माना जाएगा?

यूआईडीएआई ने इसके लिए तीन कंपनियों को चुना-एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और
एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन। इन तीनों कंपनियों पर ही इस कार्ड से जुड़ी सारी
ज़िम्मेदारियाँ हैं। इन तीनों कंपनियों पर ग़ौर करते हैं तो डर सा लगता है। एल-1
आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं। इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग
हैं, जिनका अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा
है।

अब पता नहीं कि सरकार क्यों इस कार्ड को अलादीन का चिराग बता रही है। हमारी
तहक़ीक़ात तो यही बताती है कि राशनकार्ड, कालेज या दफ्तर का पहचान पत्र,
पासपोर्ट, पैनकार्ड और निहायत ही घटिया मतदाता पहचान पत्र की तरह हमारे पास एक
और कार्ड आ जाएगा। जिसकी नकल भी मिलेगी, फर्ज़ीवाड़ा भी होगा, कार्ड बनाने वाले
दलालों के दफ्तर भी खुल जाएंगे और कुछ दिनों बाद सरकार कहेगी कि कार्ड की योजना
में कुछ कमी रह गई। क्या भारत सरकार संसद और सुप्रीम कोर्ट में यह हल़फनामा
देगी कि इस कार्ड के बनने से ग़रीबों तक सभी योजनाएं पहुँच जाएंगी, भ्रष्टाचार
खत्म हो जाएगा? दरअसल, इस कार्ड की संरचना, योजना और कार्यान्वयन की कामयाबी
भारत में संभव ही नहीं है। आधार कार्ड से कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए हैं, जिनका जवाब
देना सरकार की ज़िम्मेदारी है।

इस सरकारी अलादीन के चिराग से जुड़ा पहला सवाल यह है कि दुनिया के किसी भी देश
में क्या इस तरह के पहचान पत्र का प्रावधान है? क्या अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी
एवं फ्रांस की सरकार ने इस कार्ड को अपने यहाँ लागू किया? अगर दुनिया के किसी
देश ने यह नहीं किया तो क्या हमने इस बायोमेट्रिक पहचान पद्धति के क्षेत्र में
रिसर्च किया या कोई प्रयोग किया या फिर हमारे वैज्ञानिकों ने कोई ऐसा आविष्कार
कर दिया, जिससे इस पहचान पत्र को अनोखा बताया जा रहा है। सभी सवालों का जवाब
नहीं में है। हकीकत तो यह है कि हमने सीधे तौर पर पूरी योजना को निजी कंपनियों
पर आश्रित कर दिया। ऐसी कंपनियों पर, जिनका सीधा वास्ता विदेशी सरकारों और
खु़फिया एजेंसियों से है।

दिल्ली सल्तनत का एक राजा था सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक। मुहम्मद बिन तुग़लक
वैसे तो विद्वान था, लेकिन उसने जितनी भी योजनाएं बनाईं, वे असफल रहीं। इतिहास
में यह अकेला सुल्तान है, जिसे विद्वान-मूर्ख कहकर बुलाया जाता है। मुहम्मद बिन
तुगलक के फैसलों से ही तुग़लकी फरमान का सिलसिला चला। तुग़लकी फरमान का मतलब होता
है कि बेवक़ू़फी भरा या बिना सोच-विचार किए लिया गया फैसला। वह इसलिए बदनाम हुआ,
क्योंकि उसने अपनी राजधानी कभी दिल्ली तो कभी दौलताबाद तो फिर वापस दिल्ली
बनाई।

इतिहास से न सीखने की हमने कसम खाई है, वरना नए किस्म का पहचान पत्र यानी
यूआईडी या आधार कार्ड लागू नहीं होता। यह कार्ड खतरनाक है, क्योंकि देश के
नागरिक निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे, असुरक्षित हो जाएंगे। सबसे
खतरनाक बात यह है कि भले ही हमारी सरकार सोती रहे, लेकिन विदेशी एजेंसियों को
हमारी पूरी जानकारी रहेगी। अ़फसोस इस बात का है कि सब कुछ जानते हुए भी भारत
जैसे ग़रीब देश के लाखों करोड़ रुपये यूं ही पानी में बह जाएंगे। सरकार ने इतना
बड़ा फैसला कर लिया और संसद में बहस तक नहीं हुई।

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इसके लिए तीन कंपनियों को
चुना-एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन। इन तीनों
कंपनियों पर ही इस कार्ड से जुड़ी सारी ज़िम्मेदारियाँ हैं। इन तीनों कंपनियों
पर ग़ौर करते हैं तो डर सा लगता है। एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते
हैं। इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खु़फिया एजेंसी
सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है। एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन
अमेरिका की सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियों में से है, जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन
और इलेक्ट्रानिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजों को बेचती है। अमेरिका के होमलैंड
सिक्यूरिटी डिपार्टमेंट और यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के सारे काम इसी कंपनी के
पास हैं। यह पासपोर्ट से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाकर देती है।

इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है। इसके सीईओ ने 2006 में
कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है।
जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के खिला़फ
झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं। अब कंपनी की
वेबसाइट पर उनका नाम नहीं है, लेकिन जिनका नाम है, उनमें से किसी का रिश्ता
अमेरिका के आर्मी टेक्नोलॉजी साइंस बोर्ड, आर्म्ड फोर्स कम्युनिकेशन एंड
इलेक्ट्रानिक एसोसिएशन, आर्मी नेशनल साइंस सेंटर एडवाइजरी बोर्ड और ट्रांसपोर्ट
सिक्यूरिटी जैसे संगठनों से रहा है। अब सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों
को भारत के लोगों की सारी जानकारियाँ देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये
कंपनियाँ पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा। इस कार्ड के
बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता
है, यह सोचकर ही किसी का भी दिमाग़ हिल जाएगा। समझने वाली बात यह है कि ये
कंपनियाँ न स़िर्फ कार्ड बनाएंगी, बल्कि इस कार्ड को पढ़ने वाली मशीन भी
बनाएंगी। सारा डाटाबेस इन कंपनियों के पास होगा, जिसका यह मनचाहा इस्तेमाल कर
सकेंगी। यह एक खतरनाक स्थिति है।

सरकार की तऱफ से भ्रम फैलाया जा रहा है, रिपोट्‌र्स लिखवाई जा रही हैं, जनता
को समझाने की कोशिश की जा रही है कि आधार कार्ड बनते ही सारा सरकारी काम आसान
हो जाएगा। क्या सरकार संसद और सुप्रीम कोर्ट में यह हल़फनामा देगी कि इस कार्ड
के बनने से ग़रीबों तक सभी योजनाएं पहुँच जाएंगी, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा?

यही वजह है कि कई लोग इस कार्ड की प्राइवेसी और सुरक्षा आदि पर सवाल उठा चुके
हैं। बताया तो यह जा रहा है कि इस कार्ड को बनाने में उच्चस्तरीय बायोमेट्रिक
और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा। इससे नागरिकों की प्राइवेसी का हनन
होगा, इसलिए दुनिया के कई विकसित देशों में इस कार्ड का विरोध हो रहा है।
जर्मनी और हंगरी में ऐसे कार्ड नहीं बनाए जाएंगे। अमेरिका ने भी अपने क़दम पीछे
कर लिए हैं। हिंदुस्तान जैसे देश के लिए यह न स़िर्फ महंगा है, बल्कि सुरक्षा
का भी सवाल खड़ा करता है।

अमेरिका में यह योजना सुरक्षा को लेकर शुरू की गई। हमारे देश


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Topic: How Many Indian Doctors Loot Patients through their fixed percentage
Url: http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/t/b8930a324a37892f
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---------- 1 of 1 ----------
From: Prakriti Aarogya Kendra <prakriti.pune@gmail.com>
Date: Aug 27 04:44PM +0530
Url: http://groups.google.com/group/prakriti-a-call-to-return-to-the-nature/msg/8a0feffeb683ddfb

--- On *Fri, 19/8/11, Rohinton Mehta <rohinton.j.mehta@gmail.com>* wrote:

Wonder how much is widespread .....
*How **Indian Doctors Loot Patients.
*

Most of these observations are either completely or partially true.
Corruption has many names, and one of civil society isn't innocent either.
Professionals and businessmen of various sorts indulge in unscrupulous
practices. I recently had a chat with some doctors, surgeons and owners of
nursing homes about the tricks of their trade. Here is what they said


1) *40-60% kickbacks for lab tests*. When a doctor (whether family
doctor / general physician, consultant or surgeon) prescribes tests -
pathology, radiology, X-rays, MRIs etc. - the laboratory conducting those
tests gives commissions. In South and Central Mumbai -- 40%. In the suburbs
north of Bandra -- a whopping 60 per cent! He probably earns a lot more in
this way than
the consulting fees that you pay.

I VOUCH FOR THIS...AS A DOCTOR FRIEND ARRANGED FOR AN MRI-SCAN FOR MY
MOTHER, AND ENSURED THAT I GOT THE
MAXIMUM DISCOUNT....40% !!!!!!!..
Rohinton


2) *30-40% for referring to consultants, specialists & surgeons*. When
your friendly GP refers you to a specialist or surgeon, he gets 30-40%.

3) *30-40% of total hospital charges*. If the GP or consultant
recommends hospitalization, he will receive kickback from the private
nursing home as a percentage of all charges including ICU, bed, nursing
care, surgery.

4) *Sink tests.* Some tests prescribed by doctors are not needed. They
are there to inflate bills and commissions. The pathology lab understands
what is unnecessary. These are called "sink tests"; blood, urine, stool
samples collected will be thrown.

AT AN MEMORIAL LECTURE, A VERY PROMINENT GASTROENTEROLOGIST MENTIONED THAT
DOCTORS WHO PRACTICE AT APOLLO HOSPITALS CHENNAI ARE FORCED TO PRESCRIBE
UN-NECESSARY TESTS SO THAT THE EQUIPMENT EMI IS COLLECTED AND COST
RECOVERED..
Rohinton


5) *Admitting the patient to "keep him under observation". *People go
to cardiologists feeling unwell and anxious. Most of them aren't really
having a heart attack, and cardiologists and family doctors are well aware
of this. They admit such safe patients, put them on a saline drip with mild
sedation, and send them home after 3-4 days after charging them a fat amount
for ICU, bed charges, visiting doctors fees.

6) *ICU minus intensive care.* Nursing homes all over the suburbs are
run by doctor couples or as one-man-shows. In such places, nurses and ward
boys are 10th class drop-outs in ill-fitting uniforms and bare feet. These
"nurses" sit at the reception counter, give injections and saline drips,
perform ECGs, apply dressings and change bandages, and assist in the
operation theatre. At night, they even sit outside the Intensive Care Units;
there is no resident doctor. In case of a crisis, the doctor -- who usually
lives in the same building -- will turn up after 20 minutes, after this
nurse calls him. Such ICUs admit safe patients to fill up beds. Genuine
patients who require emergency care are sent elsewhere to hospitals having a
Resident Medical Officer (RMO) round-the-clock.

7) *Unnecessary caesarean surgeries and hysterectomies. *Many surgical
procedures are done to keep the cash register ringing. Caesarean deliveries
and hysterectomy (removal of uterus) are high on the list. While the woman
with labour -pains is screaming and panicking, the obstetrician who gently
suggests that caesarean is best seems like an angel sent by God! Menopausal
women experience bodily changes that make them nervous and gullible. They
can be frightened by words like " and "fibroids" that are in almost every
normal woman's radiology reports. When a gynaecologist gently suggests womb
removal "as a precaution", most women and their husbands agree without a
second's
thought.

8) *Cosmetic surgery advertized through newspapers.* Liposuction and
plastic surgery are not minor procedures. Some are life-threateningly major.
But advertisements make them appear as easy as facials and waxing. The
Indian medical council
has strict rules against such misrepresentation. But nobody is interested in
taking action.

9) * Indirect kickbacks from doctors to prestigious hospitals.* To be
on the panel of a prestigious hospital, there is give-and-take involved. The
hospital expects the doctor to refer many patients for hospital admission.
If he fails to send a certain number of patients, he is quietly dumped. And
so he likes to admit patients even when there is no need.

10) *"Emergency surgery" on dead body. *If a surgeon hurriedly wheels your
patient from the Intensive Care Unit to the operation theatre, refuses to
let you go inside and see him, and wants your signature on the consent form
for "an emergency
operation to save his life", it is likely that your patient is already dead.
The "emergency operation" is for inflating the bill; if you agree for it,
the surgeon will come out 15 minutes later and report that your patient died
on the operation table. And then, when you take delivery of the dead body,
you will pay OT charges, anaesthesiologist's charges, blah-blah-

Doctors are humans too. You can't trust them blindly. Please understand the
difference.

THIS ACTIVITY IS VERY VERY REAL. IN FACT THERE WAS TAMIL MOVIE MADE ON THE
REAL LIFE STORY OF JUST SUCH A SITUATION.
Rohinton


*Young surgeons and old ones.* The young ones who are setting up nursing
home etc. have heavy loans to settle. To pay back the loan, they have to
perform as many operations as possible. Also, to build a reputation, they
have to perform a large number of operations and develop their skills. So,
at first, every case seems fit for cutting. But with age, experience and
prosperity, many surgeons lose their taste for cutting, and stop
recommending operations.

*Physicians and surgeons.* To a man with a hammer, every problem looks like
a nail. Surgeons like to solve medical problems by cutting, just as
physicians first seek solutions with drugs. So, if you take your medical
problem to a surgeon first, the chances are that you will unnecessarily end
up on the operation table. Instead, please go to an ordinary *GP first
*

Prof. B. M. Hegde, MD, FRCP, FRCPE, FRCPG, FRCPI, FACC, FAMS.
Padma Bhushan Awardee 2010.
Editor-in-Chief, The Journal of the Science of Healing Outcomes,
Chairman, State Health Society's Expert Committee, Govt. of Bihar, Patna.
Former Prof. Cardiology, The Middlesex Hospital Medical School, University
of London,
Affiliate Prof. of Human Health, Northern Colorado University,
Retd. Vice Chancellor, Manipal University,

If it is something you don't like or seen before, hit the delete key and
move on....

.


------ End of Forwarded Message

****

--

धन्यवाद एवं हार्दिक शुभेच्छा,

*प्रकृति आरोग्य केंद्र*

*सेंद्रिय, आयुर्वेदिक, वनस्पतीय, प्राकृतिक और स्वदेशी वस्तुओं
का वैशेषिक विक्रय केंद्र*
=====================================================
*Thanks and Regards,
Prakriti Aarogya Kendra
Specialty Store of Organic, Ayurvedic, Herbal, Natural & Swadeshi Products
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*Shop No. 2, Buena Vista,
Off Ganpati Chowk,
Near Kailas Super Market
Viman Nagar, Pune - 411014
Contact Number : 020-40038542, 9822622905, 9881308509

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